सूर्याष्टकम्
आठ श्लोकों का यह सूर्याष्टक, श्री कृष्ण और उनकी द्वितीय पत्नी जम्बावती के पुत्र साम्ब के
द्वारा रचित है।
साम्ब के द्वारा ‘साम्ब पुराण’ की रचना हुई, सूर्याष्टक उसी साम्ब पुराण का एक भाग है।
अथ श्री सूर्याष्टकम्
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते।1।
अर्थ – हे आदिदेव! तुम्हें नमस्कार है, हे भास्कर! आप मुझ पर प्रसन्न हों।हों हे दिवाकर (दिन प्रारंभ
करने वाले) तुम्हें नमस्कार है, प्रभाकर (उजाला करने वाले) तुम्हें नमस्कार है।।
सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्।
श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।2।
अर्थ – सात अश्वों (घोड़ों) वाले रथ पर आरूढ़, प्रचंड तेज वाले, कश्यप ऋषि के पुत्र, हाथ में श्वेत
कमल धारण करने वाले हे सूर्यदेव! मैं आपको नमस्कार करता हूँ।।
लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ।3।
अर्थ – लाल रंग के रथ पर विराजित, सभी लोकों के पितामह कहलाने वाले, बड़े पापों को हरने
वाले हे सूर्य देव, मैं तुम्हें नमस्कार करता हूँ।।
त्रैगुण्यश्च महाशूरं ब्रह्माविष्णु महेश्वरम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ।4।
अर्थ – जो तीनों गुणों (सत, रज, तम) के स्वामी हैं, जो साक्षात् ब्रम्हा विष्णुऔर महेश (शिव) हैं, बड़े
पापों को हरने वाले हे सूर्यदेव! मैं आपको नमस्कार करता हूँ।।
बृहितं तेजः पुञ्ज च वायु आकाशमेव च।
प्रभुत्वं सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ।5।
अर्थ – जो बहुत बड़े तेज पुंज (प्रकाश का स्रोत) हैं, जो स्वयं वायु और आकाश हैं, ऐसे सभी लोकों
के प्रभु (स्वामी) हे सूर्यदेव! मैं आपको नमस्कार करता हूँ।।
बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम्।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।6।
अर्थ – बंधूक (दुपहरिया) के पुष्प के समान लाल और हार कुंडल से सुशोभित, एक चक्र धारण
करने वाले हे सूर्य देव! मैं तुम्हें नमस्कार करता हूँ।।
तं सूर्यं लोककर्तारं महा तेजः प्रदीपनम्।
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ।7।
अर्थ – हे सूर्य देव! आप ही जगत की रचना करने वाले हो, आपका तेज महादीप्ति करता है,
महापापों को हरने वाले हे सूर्य देव! मैं आपको नमस्कार करता हूँ।।
तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।8।
अर्थ – हे सूर्यदेव! आप जगत के नाथ (स्वामी) हैं, आप ज्ञान-विज्ञान और मोक्ष के दाता हैं, महापापों
को हरने वाले हे सूर्य देव! मैं आपको नमस्कार करता हूँ।।
फलश्रुतिः-
सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम्।
अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत् ।9।
अर्थ – जो सूर्याष्टक का नित्य पाठ करता है,उसके ग्रह दोषों का नाश होता है, बाँझ और
निपुत्रों को पुत्र की प्राप्ति होती है, दरिद्र धनवान हो जाता है।।
अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने।
सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता।10।
अर्थ – जो सूर्य की पूजा के दिन मांस या मदिरा का सेवन करता है, वह सात जन्मों के लिए रोगी हो
जाता है, और प्रत्येक जन्म में वह दरिद्र होता है।।
स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने।
न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति।11।
अर्थ – जो सूर्य के दिन स्त्री, तेलीय भोजन, मदिरा और मांस का त्याग करता है, उसे कोई रोग,
दुः ख और दारिद्र (गरीबी) नहीं होते और मरणोपरांत वह सूर्य लोक को जाता है।।
।इति श्रीसूर्याष्टकं सम्पूर्णम्।