शनि चालीसा का हिंदी अनुवाद
||जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल|| ||दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल||
अर्थात : हे माता पार्वती के सुपुत्र “प्रभु श्री गणेश” जी आपकी जय हो। हे गणेश जी आप मंगलकर्ता हो तथा आप बहुत दयावान हो। प्रभु आप दिन दुखियों के दुःख हर देते हो तथा उन्हें खुशियों से भर देते हो ।
||जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज|| ||करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव आपकी जय जयकार हो। हे महाराज शनिदेव – आप हमारी प्रार्थना सुनिए। हे भगवान सूर्यनारायण के सुपुत्र आप हम पर कृपा करो और अपने भक्तजनों की लाज रखिये।
||जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला|| ||चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै||
अर्थात : हे “दयानिधि शनिदेव” आपकी जय हो प्रभु! आप अपने भक्तों के पालनकर्ता तथा रक्षक हो। हे शनिदेव आपका रंग सावला (श्याम) है तथा आपकी “चार भुजाएं” है। हे शनिदेव आपके मस्तक पर “रत्न जड़ित मुकुट” आपके मस्तक की शोभा बढ़ा रही है।
||परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला|| ||कुण्डल श्रवन चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमकै||
अर्थात : हे शनिदेव आपका मस्तक बहुत बड़ा तथा आकर्षक है तथा आपकी दृष्टि “टेढ़ी” ही रहती है। प्रभु आपकी विकराल भृकुटि दिखलाई पड़ती है। हे शनि देव आपके कानों में चमकदार सोने के “कुण्डल” है तथा आपके छाती पर मोती तथा मणियों की हार आपकी आभा तथा शोभा बढ़ती है।
||कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं अरिहिं संहारा|| ||पिंगल, कृष्णो, छाया, नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन||
अर्थात : हे प्रभु ! आपने अपने हाथों में गदा तथा त्रिशूल उठाया हुआ है जिनके द्वारा आप क्षण भर में ही शत्रुओं तथा असुरों का संहार कर देते हो। हे प्रभु शनिदेव आपके दस नाम है जैसे की – “पिंगल”, “कृष्ण”, “छाया नंदन”, “यम”, “कोणस्थ”, “रौद्र”, “दु:ख भंजन”, “सौरी”, “मंद”।
||सौरी, मन्द शनी दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा|| ||जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं । रंकहुं राव करैं क्षण माहीं||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव आप भगवान सूर्य के पुत्र हो और आपको प्रत्येक कार्य में सफलता के लिए पूजा जाता है। प्रभु ! जिस पर भी आप प्रसंन्न हो जाते हो आप उस पर कृपा करते हो। प्रभु आप क्षण भर में ही एक गरीब को भी राजा बना देते हो ।
||पर्वतहू तृण होइ निहारत । तृणहू को पर्वत करि डारत|| ||राज मिलत वन रामहिं दीन्हयो । कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो||
अर्थात : हे प्रभु शनि देव जिनपर भी आप कृपा करते है उसे बड़े से बड़ा कष्ट व समस्या भी घास की एक छोटी सी तिनके मात्र सी प्रतीत होती है, परन्तु जिसपर भी आप क्रोधित हो जाएँ उसके लिए छोटी सी छोटी समस्या भी पहाड़ जैसी हो जाती है। हे प्रभु जी आपकी दशा के कारण ही भगवान “श्री राम” को राज-पाट के बदले में वनवास मिला और आपके ही प्रभाव के कारण “कैकयी” ने बुद्धि – हीन निर्णय लिया था ।
||वनहुं में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चुराई|| ||लषणहिं शक्ति विकल करिडारा । मचिगा दल में हाहाकारा||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव जी आपकी दशा चलने के कारण ही “माता सीता” वन में मायावी हिरन के कपट को पहचान न पाई तथा उनकी सूझ-बुझ भी काम न आ सकी। प्रभु ! आपकी दशा चलने के कारण ही “लक्ष्मण” के प्राण निकल गए थे जिससे की श्री राम और समस्त सेना में हाहाकार मच गई थी।
||रावण की गति–मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई|| ||दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव जी आप ही के दशा प्रभाव के कारण “रावण” ने भी बुद्धिहीन कुकृत्य किया तथा “प्रभु श्री राम” जी से अपनी शत्रुता को बढ़ा लिया। प्रभु ! आप की ही कृपा दृष्टि के कारणवश “प्रभु हनुमान” जी का डंका समस्त संसार में बजा, उनका नाम हुआ तथा समस्त लंका का विनाश हुआ।
||नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा|| ||हार नौलखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! आपकी ही नाराजगी के कारणवश “राजा विक्रमादित्य” को अकेले जंगलों में भटकना पड़ा, उनके सामने ही हार को “मोर” ने निगल लिया तथा उन पर ही “हार के चोरी” का आरोप लग गया और उसी नौलखे हार के आरोप के कारण उनके हाथ तथा पावं को तोड़ दिया गया।
||भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलहिं घर कोल्हू चलवायो|| ||विनय राग दीपक महँ कीन्हयों । तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! आपकी ही दशा दृष्टि के कारणवश “राजा विक्रमादित्य” को एक तेली के घर जाकर “कोल्हू” चलाना पड़ा। परन्तु जब उन्होंने “दीपक राग” में आप से प्रार्थना की तो आप प्रसन्न भी हुए और आपने उन्हें फिर सुख समृद्धि तथा वैभव से निहाल कर दिया।
||हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी|| ||तैसे नल पर दशा सिरानी । भूंजी–मीन कूद गई पानी||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! आपकी ही दशा दृष्टि के कारणवश “राजा हरिश्चन्द्र”” की स्त्री भी बिक गई और स्वयं को भी किसी “डोम” के घर पर पानी भरना पड़ा था और इसी प्रकार “राजा नल” तथा “रानी दमयंती” को भी कष्ट उठाने पड़े थे। प्रभु आपकी ही दशा के कारण भुनी हुई मछली भी जल में कूद गई और “राजा नल” को भोजन नसीब न हुआ और भूके मरना पड़ा।
||श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई । पारवती को सती कराई|| ||तनिक विकलोकत ही करि रीसा । नभ उड़ि गतो गौरिसुत सीसा||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! आपकीदशा दृष्टि जब “भगवान शिव” पर पड़ी तो “माता पार्वती” भी हवन कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दी और आपके ही दशा के कारणवश “भगवान गणेश” का मस्तक धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया था ।
||पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रोपदी होति उधारी|| ||कौरव के भी गति मति मारयो । युद्ध महाभारत करि डारयो||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! आपकी दशा दृष्टि जब ”पांडवों” पर पड़ी तो “द्रौपदी” वस्त्रहीन होती – होती बचीं। प्रभु ! आपकी ही दशा दृष्टि के कारण कौरवों की बुद्धि भ्रष्ट हो गई तथा उनकी मति मारी गई जिसके परिणाम स्वरूप “महाभारत का महायुद्ध” हुआ था।
||रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला|| ||शेष देव–लखि विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ाई||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! आपकी दशा की कुदृष्टि से आपके पिता “भगवान सूर्य नारायण” भी बच न सके और उन्हें आप अपने मुख में लेकर “पातललोक” में कूद गए थे। प्रभु! देवों के लाख-लाख बार की गई विनती सुनने के बाद ही आपने “सूर्यदेव” को अपने मुख से रिहा किया ।
||वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना|| ||जम्बुक सिह आदि नख धारी । सो फल ज्योतिष कहत पुकारी||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! आपके वाहन 7 है । जिनमे क्रमश: “हाथी, घोड़ा, गधा, हिरण, कुत्ता, सियार और शेर” है और आप जिस भी वाहन पर बैठ कर आते है उसी के आधार पर “ज्योतिष” आपके फल की गणना कर पाते है।
||गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै|| ||गर्दभ हानि करै बहु काजा । सिह सिद्ध्कर राज समाजा||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! जब आप हाथी पर सवारी करते हुए आते हो तो घर में “लक्ष्मी” आती है । जब आप घोड़े पर सवारी करते हुए आते हो तो घर में सुख – संपत्ति आती है। जब आप गधा पर सवारी करते हुए आते हो तो घर में सभी प्रकार के कार्यों में ही अड़चन आती है और जिनके घर आप शेर पर सवारी करके जाते है तो उस घर का सामाज में रुतबा बढ़ता है और उन्हें प्रसिद्धि प्राप्त होती है ।
||जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्राण संहारै|| ||जब आवहिं स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! जब आप सियार पर सवारी करते हुए आते हो तो आपके दशा के कारण मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। जब आप हिरण पर सवारी करते हुए आते हो तो स्वास्थ्य से सम्बंधित परेशानिया लेकर आते है जो की जानलेवा भी होती है। प्रभु ! जब भी आप कुत्ते पर सवारी करते हुए आते हो तो यह किसी बड़ी चोरी का संकेत देता है ।
||तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा|| ||लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! आपके चरण भी है जो इस प्रकार है – ”सोना, चांदी, तांबा तथा लोहा” जो की “चार धातु” है। आपका लोहा के चरण में आना – धन, जन तथा संपत्ति के हानि होने का सूचक है ।
||समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्वसुख मंगल भारी|| ||जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! आपका चांदी व तांबे के चरण में आना अर्थात यह शुभता लिए हुए है, लेकिन जब आप “सोने” के चरणों में आते है तो यह अत्यंत ही शुभता लिए हुए होता है यह सुख और कल्याण का सूचक है । जो भी “शनि चरित्र” को प्रतिदिन गायेगा उसे आपके दशा कोप का सामना कदापि नहीं करना पड़ेगा तथा आपकी दशा में उसे कोई भी पीड़ा नहीं होगी ।
||अद्भुत नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशि बलि ढीला|| ||जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! आपकी लीला अद्भुत है। जो भी किसी अच्छे विद्वान और सुयोग्य पंडित जी को आदरपूर्वक बुलाकर विधि – विधान से “शनिग्रह” शांत करवाता है आप उनके शत्रुओं को कमजोर कर देते है।
||पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत|| ||कहत राम सुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! शनिवार के दिन जो कोई भी “पीपल के वृक्ष” में जल चढ़ता है तथा दीपक जलाता है उसे अत्यधिक सुख की प्राप्ति होती है। “प्रभु शनिदेव” के दास “श्री रामसुंदर” जी भी कहते है भगवान शनिदेव के सुमिरन सुख की प्राप्ति होने से अज्ञानता का अन्धकार मिट जाता है तथा ज्ञान का प्रकाश फ़ैल जाता है । ॥ दोहा ॥
||पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार|| ||करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार||
अर्थात : हे प्रभु शनिदेव ! आपके इस पाठ को आपके भक्त ने तैयार किया है, जो कोई भी इस पाठ अर्थात “शनि चालीसा” को “चालीस दिन तक पाठ” करेगा उसे भगवान शनिदेव की कृपा मिलेगी जिससे वो जीवन के इस “भवसागर” को भी पार कर जाएगा । ||इति श्री शनि चालीसा संपूर्णम||