भोजन मन्त्र: ॐ सह नाववतु
अन्न ग्रहण करने से पहले मन में विचार करना है, किस हेतु से इस शरीर का रक्षण पोषण करना है l
हे परमेश्वर एक प्रार्थना
नित्य तुम्हारे चरणों में
लग जाये तन मन धन मेरा
विश्व धर्म की सेवा में ॥
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना।।
अर्थ – यह मंत्र गीता में चतुर्थ अध्याय का 24 श्लोक है। जिसका अर्थ है जिस यज्ञ में अर्पण अर्थात स्रुवा आदि भी ब्रह्म है, और हवन किये जाने योग्य द्रव्य भी ब्रह्म है, और ब्रह्म रूप कर्ता के द्वारा ब्रह्म रूप अग्नि में आहुति देना रूप क्रिया भी ब्रह्म ही है। उस ब्रह्म कर्म में स्थित रहने वाला योगी द्वारा प्राप्त किये जाने योग्य फल भी ब्रह्म ही है।
अन्न॑प॒तेन्न॑स्य नो देह्यनमी॒वस्य॑ शु॒ष्मिणः॑ ।
प्रप्र॑ दा॒तार॑न्तारिष॒ऽऊर्ज॑न्नो धेहि द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे।।
अर्थ – यह मंत्र यजुर्वेद के ११ अध्याय का ८३ श्लोक है। हे परम पिता परमात्मा, हे नाना विधि अन्नों के दाता! नाना विधि अन्नों को हमें प्रदान कीजिए। रोग रहित व पुष्टिकारक अन्न हमें प्रदान कर ओज प्रदान कीजिए। हे अन्नदाता के मंगलकर्ता! ऐसा विधान कीजिए की प्राणिमात्र को भोजन प्राप्त हो और सभी सुख शांति को प्राप्त करें।
ॐ सह नाववतु।
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु।
मा विद्विषावहै॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
अर्थ – यह बहुत प्रसिद्ध मंत्र जिसे स्कूलों में सिखाया जाता है। यह कठोउपनिषद का श्लोक है। इस मंत्र का अर्थ है कि हे सर्व रक्षक परमेश्वर! हम दोनों (गुरू और शिष्य) की साथ साथ रक्षा कीजिए। हम दोनों का साथ साथ पालन कीजिए। हम दोनो साथ साथ शक्ति प्राप्त करें। हम दोनों की पढी हुई शिक्षा ओजमयी हो। हम परस्पर कभी द्वेष न करें।