श्री जाहरवीर चालीसा
॥ दोहा ॥
सुवन केहरी जेवर, सुत महाबली रनधीर ।
बन्दौं सुत रानी बाछला, विपत निवारण वीर ॥
जय जय जय चौहान, वन्स गूगा वीर अनूप ।
अनंगपाल को जीतकर, आप बने सुर भूप ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय जाहर रणधीरा । पर दुख भंजन बागड़ वीरा ॥१॥
गुरु गोरख का है वरदानी । जाहरवीर जोधा लासानी ॥२॥
गौरवरण मुख महा विशाला । माथे मुकट घुंघराले बाला ॥३॥
कांधे धनुष गले तुलसी माला । कमर कृपान रक्षा को डाला ॥४॥
जन्में गूगावीर जग जाना । ईसवी सन हजार दरमियाना ॥५॥
बल सागर गुण निधि कुमारा । दुखी जनों का बना सहारा ॥६॥
बागड़ पति बाछला नन्दन । जेवर सुत हरि भक्त निकन्दन ॥७॥
जेवर राव का पुत्र कहाये । माता पिता के नाम बढ़ाये ॥८॥
पूरन हुई कामना सारी । जिसने विनती करी तुम्हारी ॥९॥
सन्त उबारे असुर संहारे । भक्त जनों के काज संवारे ॥१०॥
गूगावीर की अजब कहानी । जिसको ब्याही श्रीयल रानी ॥११॥
बाछल रानी जेवर राना । महादुःखी थे बिन सन्ताना ॥१२॥
भंगिन ने जब बोली मारी । जीवन हो गया उनको भारी ॥१३॥
सूखा बाग पड़ा नौलक्खा । देख-देख जग का मन दुक्खा ॥१४॥
कुछ दिन पीछे साधू आये । चेला चेली संग में लाये ॥१५॥
जेवर राव ने कुआ बनवाया । उद्घाटन जब करना चाहा ॥१६॥
खारी नीर कुए से निकला । राजा रानी का मन पिघला ॥१७॥
रानी तब ज्योतिषी बुलवाया । कौन पाप मैं पुत्र न पाया ॥१८॥
कोई उपाय हमको बतलाओ । उन कहा गोरख गुरु मनाओ ॥१९॥
गुरु गोरख जो खुश हो जाई । सन्तान पाना मुश्किल नाई ॥२०॥
बाछल रानी गोरख गुन गावे । नेम धर्म को न बिसरावे ॥२१॥
करे तपस्या दिन और राती । एक वक्त खाय रूखी चपाती ॥२२॥
कार्तिक माघ में करे स्नाना । व्रत इकादसी नहीं भुलाना ॥२३॥
पूरनमासी व्रत नहीं छोड़े । दान पुण्य से मुख नहीं मोड़े ॥२४॥
चेलों के संग गोरख आये । नौलखे में तम्बू तनवाये ॥२५॥
मीठा नीर कुए का कीना । सूखा बाग हरा कर दीना ॥२६॥
मेवा फल सब साधु खाए । अपने गुरु के गुन को गाये ॥२७॥
औघड़ भिक्षा मांगने आए । बाछल रानी ने दुख सुनाये ॥२८॥
औघड़ जान लियो मन माहीं । तप बल से कुछ मुश्किल नाहीं ॥२९॥
रानी होवे मनसा पूरी । गुरु शरण है बहुत जरूरी ॥३०॥
बारह बरस जपा गुरु नामा । तब गोरख ने मन में जाना ॥३१॥
पुत्र देन की हामी भर ली । पूरनमासी निश्चय कर ली ॥३२॥
काछल कपटिन गजब गुजारा । धोखा गुरु संग किया करारा ॥३३॥
बाछल बनकर पुत्र पाया । बहन का दरद जरा नहीं आया ॥३४॥
औघड़ गुरु को भेद बताया । तब बाछल ने गूगल पाया ॥३५॥
कर परसादी दिया गूगल दाना । अब तुम पुत्र जनो मरदाना ॥३६॥
लीली घोड़ी और पण्डतानी । लूना दासी ने भी जानी ॥३७॥
रानी गूगल बाट के खाई । सब बांझों को मिली दवाई ॥३८॥
नरसिंह पंडित लीला घोड़ा । भज्जु कुतवाल जना रणधीरा ॥३९॥
रूप विकट धर सब ही डरावे । जाहरवीर के मन को भावे ॥४०॥
भादों कृष्ण जब नौमी आई । जेवरराव के बजी बधाई ॥४१॥
विवाह हुआ गूगा भये राना । संगलदीप में बने मेहमाना ॥४२॥
रानी श्रीयल संग परे फेरे । जाहर राज बागड़ का करे ॥४३॥
अरजन सरजन काछल जने । गूगा वीर से रहे वे तने ॥४४॥
दिल्ली गए लड़ने के काजा । अनंग पाल चढ़े महाराजा ॥४५॥
उसने घेरी बागड़ सारी । जाहरवीर न हिम्मत हारी ॥४६॥
अरजन सरजन जान से मारे । अनंगपाल ने शस्त्र डारे ॥४७॥
चरण पकड़कर पिण्ड छुड़ाया । सिंह भवन माड़ी बनवाया ॥४८॥
उसीमें गूगावीर समाये । गोरख टीला धूनी रमाये ॥४९॥
पुण्य वान सेवक वहाँ आये । तन मन धन से सेवा लाए ॥५०॥
मनसा पूरी उनकी होई । गूगावीर को सुमरे जोई ॥५१॥
चालीस दिन पढ़े जाहर चालीसा । सारे कष्ट हरे जगदीसा ॥५२॥
दूध पूत उन्हें दे विधाता । कृपा करे गुरु गोरखनाथ ॥५३॥
॥ इति श्री जाहरवीर चालीसा संपूर्णम् ॥